हज़रत मुहम्मद स० के बारे में कुछ खास बातें
अल्लाह तआला ने अपने प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जरिये अपने बन्दों को दुनिया की जिंदगी जीने का तरीका बताया। क़ुरान और हदीस की रोशनी में जिंदगी जीने में ही दुनिया और आखरत में कामयाबी है। अल्लाह के हुक्मों को उसके बन्दों तक पहुँचाने में हमारे नबी को जितनी तकलीफें उठानी पड़ी उतनी तकलीफें किसी भी दौर के नबी को नहीं उठानी पड़ी। अपने उम्मत को जहन्नम की आग से बचाने के लिए हमारे नबी बहुत चिंतित रहा करते थे। आईये अपने नबी करीम हज़रत मुहम्मद स० के बारे में कुछ खास बातें जानिए।
पैदाइश(जन्म )-
तारीख़ -12 रबीउल अव्वल , दिन- सोमवार , टाइम- सुबह ( 20 /22 अप्रैल 571 ई० ), जगह – दारे इब्ने
युसूफ , मक्का
वालिद का नाम (पिता) – अब्दुल्लाह
वालिदा का नाम (माँ ) – आमिना
दादा का नाम – अब्दुल मुत्तलिब
दादी का नाम – फातिमा बिन्ते उमरु बिन आईज
नाना का नाम – वहाब
नानी का नाम – बर्रह बिन्त अब्दुल उज्जा
खानदान – क़ुरैश
हज़रत दाई हलीमा –
अरब के शहरों में रहने वालों का ये तरीका था कि अपने बच्चों को शहर के रोगों से दूर रखने के लिए दूध पिलाने वाली औरतों के पास रखते थे ताकि उनका शरीर मजबूत हो और शुद्ध अरबी भाषा सीख सकें। आपके लालन पालन के लिए हज़रत दाई हलीमा के हवाले किया गया। अल्लाह तआला ने अपने प्यारे रसूल मुहम्मद स. के जिंदगी को इंसानी जिंदगी का नमूना बनाया। इंसानी जिंदगी में जितने वाक़्यात हो सकते हैं वो सब कुछ हमारे नबी की जिंदगी में हुये । एक से ज्यादा शादियां इसी बात की तरफ इशारा करती हैं की इंसान किन किन हालात में, किस किस तरह की औरतों से निक़ाह कर सकता है। किन किन हालात में दूसरा निकाह किया जाये, किस तरह एक से अधिक औरतों से निकाह करने पर उनके हक़ अदा किये जाएँ, किस तरह उनके साथ इंसाफ किया जाये ये सब हमारे नबी की जिंदगी से सीखने लायक है।
हज़रत मुहम्मद स. से निकाह में आयी कुछ औरतों के नाम –
1. हज़रत ख़दीजारज़िअल्लाहुअन्हा
2. हज़रत सौदारज़िअल्लाहुअन्हा
3. हज़रत आइशारज़िअल्लाहुअन्हा
4. हज़रत उम्मेसलमारज़िअल्लाहुअन्हा
5. हज़रत हफ़सारज़िअल्लाहुअन्हा
6. हज़रत ज़ैनबबिन्तजहशरज़िअल्लाहुअन्हा
7. हज़रत जुवैरियारज़िअल्लाहुअन्हा
8. हज़रत उम्मेहबीबारज़िअल्लाहुअन्हा
9. हज़रत सफियारज़िअल्लाहुअन्हा
हज़रत मैमूना रज़िअल्लाहुअन्हा
11. हज़रत ज़ैनबबिन्तखुजैमारज़िअल्लाहुअन्हा
हज़रत मुहम्मद स. के सभी औलाद का उनकी जिंदगी में वफ़ात हो गया था .
खूबसूरत एख़लाक़
आप सल्ललाहु अलैहिवसल्लम शुरू से ही अपनी ईमानदारी, अमानतदारी, अच्छे व्यवहार, दुश्मनों से भी अच्छा बर्ताव के लिए जाने जाते थे। आपके ईमादारी और वफादारी से मुतास्सिर होकर उस समय की बहुत मालदार और ऊँचे मरतबे वाली महिला हज़रत ख़दीजा रज़ि.ने आपसे निकाह का पैगाम भेजा था। निकाह के वक़्त आपकी उम्र 25 साल और हज़रत ख़दीजा कीउम्र 40 साल बताई जातीहै।
हिजरत
कुफ्फारे मक्का का अत्याचार हद से पार होने लगा तो आपने अपने कुछ साथियों के साथ मक्का से मदीना हिजरत कर गए। बाद में आपको उनसे निपटने के लिए कई लड़ाइयां लड़नी पड़ी। बद्र की लड़ाई और उहद की लड़ाई खास तौर पर जानी जाती हैं।
वह्य- वह्य के जरिये हज़रात ज़िब्राईल अलैहिस्सलाम से आपके पास अल्लाह का पैगाम पहुंचता था।
पहली वह्य-
जगह – गारे हिरा ( हिरा नाम की गुफा ), मक्का
दिन – सोमवार
तारीख – रमजान की 21 तारीख , 10 अगस्त 610 ई०
मेराज की खास घटना
ये बहुत ही अद्भुत घटना थी। बुर्राक पर सवार करके हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम आपको बैतूल मुक़द्दस ले गए। जहाँ आपने नबियों की जमात को नमाज पढाई। फिर वहां से उसी रात आपको जिस्मे मुबारक के साथ आसमानी दुनिया तक ले जाया गया। एक एक करके सभी आसमानों पर से गुजरते गये और अंत में सातवें आसमान पर आपको अल्लाह तआला के दरबार में ले जाया गया जहाँ आपकी उम्मत पर 5 वक़्त की नमाज फ़र्ज़ की गयी । जमीन से सातवें आसमान तक का सफर ही मेराज कहलाता है।
HAZARAT MUHAMMAD S. हज़रत मुहम्मद स. के अंतिम दिन
आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम को अंतिम दिनों में तेज सर दर्द, घटते बढ़ते बुखार, बहुत ज्यादा कमजोरी थी। आपने हज़रत फ़तिमा को खुश खबरी दी कि वे दुनिया की तमाम औरतों की सरदार हैं। वफ़ात से कुछ दिन पहले अपने को कससा (बदला लेने ) के लिए पेश किया। आपने फ़रमाया –
“मैंने अगर किसी के पीठ पर कोड़ा मारा हो तो मेरी पीठ हाजिर है। वह बदला लेले। अगर किसी की आबरू पर चोट की हो तो मैं हाजिर हूँ, बदला लेले।“
“अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है। मौत की सख़्तियाँ है।“
HAZARAT MUHAMMAD S. हज़रत मुहम्मद स. के अंतिम दिनों की कुछ वसीयतें –
“नमाज और गुलामो के साथ अच्छा सलूक करना। ”
“किताब और सुन्नत को मजबूती से पकड़े रहना “
“यहूदियों और ईसाईयों पर अल्लाह की लानत की उन्होंने अपने नबियों के क़ब्रों पर सजदा करने लगे”
“तुम लोग मेरी क़ब्र को बुत न बनाना कि उसकी पूजा की जाये “
“अंसार के साथ अच्छा सलूक करना ,जो अंसार भलाई करें उनके साथ भलाई करना, जो गलती करें उनको माफ़ कर देना “
अंत समय में अपने मिस्वाक किया था ।
12 रबीउल अव्वल, 11 हिजरी, दिन सोमवार, चाश्त का वक़्त, उम्र 63 साल – दुनिया के आखरी नबी रफ़ीक़े आला से जा मिले।
12 रबीउल अव्वल सोमवार को हमारे नबी की पैदाइश भी है और वफ़ात भी।
हज़रत मुहम्मद स० के बारे में कुछ खास बातें आपने जाना। इन बातों को उन लोगों तक पहुंचाएं जो नहीं जानते हैं। दीन की बातें लोगों को बताना भी नेकी का जरिया है ।