क़ुरबानी क्यों किया जाता है?
क़ुरबानी क्या है?
Qurbani Kyon Kiya Jata Hai ? कुर्बानी का मतलब है अल्लाह की राह में अपनी प्यारी चीज को कुर्बान कर देना. सवाल उठता है कि इस कुर्बानी के पीछे क्या है? यह क्यों मुसलमानों पर वाजिब है? आईये जानते हैं कुर्बानी के पीछे का सच.
क़ुरबानी के पीछे का सच
हज़रत इब्राहिम अलैहिस्लाम अल्लाह के बहुत प्यारे नबी थे. बहुत ही नेक और तक़वा वाले थे. अल्लाह ताला ने उनका इम्तहान लेना चाहा. एक बार इन्होने ख़्वाब में देखा कि वे अपने बेटे इस्माइल अलैहिस्सलाम को अल्लाह की राह में क़ुरबान कर रहे हैं. आँख खुली तो बेचैनी का आलम था. इशारा ये था कि वे अल्लाह की राह में अपनी सबसे प्यारी चीज क़ुरबान करे. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सल्म को अपना बेटा सबसे प्यारा था. यह सोच कर उनका दिल बैठने लगा. मासूम ह.इस्माइल ने अपने वालिद से बेचैनी का कारण पूछा तो उन्होंने अल्लाह के हुक्म को बता दिया. ह. इस्माइल ने कहा- “ जब अल्लाह का हुक्म है तो आप पूरा कीजिये. इंशाअल्लाह आप मुझे सब्र करनेवालों में पाएंगे.
ह.इब्राहिम ने बेटे तो नहला धुला कर नए कपडे पहना कर उसकी क़ुरबानी देने के लिया मीना मदीना के लिए चल दिए. वहां पहुँच कर बेटे को लिटा कर जब उसके गले पर छुरी चलाना चाहे तो बेटे ने कहा “ रुकिए अब्बा हुजुर. पहले अपनी आँखों पर पट्टी बांध लें ताकि छुरी चलाते वक़्त ऐसा न हो जाये कि मेरी मुहब्बत में आपका इरादा बदल जाये और आप अल्लाह का हुक्म पूरा न कर पाए .”
आँख पर पट्टी बांध कर जब बेटे के गले पर छुरी चलाया तो छुरी काम नहीं की. फिर दूसरी बार छुरी चलाया तो काम हो गया. बेटे की क़ुरबानी हो गई. जब उन्होंने आँख पर से पट्टी हटाया तो देखा कि ह. इस्माइल की जगह एक दुम्बा क़ुरबानी हुआ है जिसे ह. जिब्राइल अलैहिस्सल्म अल्लाह के हुक्म से जन्नत से लेकर आये थे. ह. जिब्राइल ने बताया कि अल्लाह ताला ने आपका इम्तहान लिया और आप कामयाब रहे.
इसी घटना के बाद से मुसलमानों पर क़ुरबानी वाजिब कर दी. जो साहिबे निसाब है उन पर वाजिब है कि इदुल अजहा (बकरीद) के दिन एक जानवर अल्लाह के राह में कुर्बान करे.
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क़ुरबानी किस पर वाजिब है?
क़ुरबानी हर उस मुस्लमान पर वाजिब है जो इतनी ताक़त रखता है कि वह जानवर खरीद कर क़ुरबानी कर सके. कुर्बानी अल्लाह को बहुत पसंद है. असल में क़ुरबानी अल्लाह से बन्दे की मुहब्बत का इज़हार है. यह रूहानी मुहब्बत है. कहा तो ये गया है कि जिसमें कुर्बानी की ताक़त हो फिर भी वह कुर्बानी नहीं करता तो वह मुसलमानों की ईदगाह में हाजिर न हो.
क़ुरबानी का दिखावा बिलकुल न करें
क़ुरबानी अल्लाह के साथ बन्दे के मुहब्बत की अलामत है. ये रूहानी मोहब्बत की बात है. इसमें दिखावा के लिए कोई जगह नहीं है. क़ुरबानी सिर्फ अल्लाह को राजी करने के लिए किया जाना चाहिए. सारे जहाँ के मालिक को सब पता है कि कौन अल्लाह से दिली मुहब्बत और तक़वा की वजह से क़ुरबानी कर रहा है. उसको ये भी पता है कि कौन दूसरे लोगों को दिखाने के लिए, लोगों को खिलाने पिलाने के लिए और समाज में वह वाही के लिए कुर्बानी कर रहा है. दिखावा करने वाले लोग क़ुरबानी के सवाब से महरूम रह जाते हैं. जो जिस मकसद से क़ुरबानी करता है उसको वही मिलता है.
क़ुरबानी का रोजा कब रखें?
जिल हिज के महीने की 1 तारीख से 9 तारीख तक रोजा रखना चाहिए. जो लोग रोजा रख सकते हैं, जरुर रखें. इन रोजों का बहुत सबाब है. लेकिन जो नहीं रख सकते उनको किसी तरह का कोई गुनाह नहीं है. कुरबानी के दिन कुरबानी होने तक रोजा रखें.
क़ुरबानी में क्या परहेज करें?
जुल हिज (बकरीद) का चाँद दिख जाये तो क़ुरबानी हो जाने तक जिस्म के बाल और नाख़ून न कटाए.
क़ुरबानी कब करें ?
क़ुरबानी जुल हिजः के महीने (बकरीद महीने) की 10, 11 और 12 तारीख को किया जाता है.
क़ुरबानी के गोस्त का क्या करें?
क़ुरबानी के गोस्त का 3 हिस्सा करें- एक हिस्सा खुद रखिये. दूसरा हिस्सा पड़ोसियों और रिश्तेदारों में बांटें. तीसरा हिस्सा गरीबों में बांटे.
Qurbani Kyon Kiya Jata Hai ? के तहत ये बताया गया कि इसके पीछे में वजह क्या है और इसे कैसे मनाना चाहिए. कुरबानी त्याग का त्यौहार है. क़ुरबानी अल्लाह को पसंद है. वैसे भी हम जिसे पसंद करते हैं उसके पसंद का ख्याल रखते है. उसके पसंद का काम करते हैं. अल्लाह के राह में अपनी प्यारी चीज कुरबान करना ही अल्लाह के लिए सच्ची मुहब्बत का इज़हार है.
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